तालिका A

क्रम सं. मामला क्र. याचिकाकर्ता का नाम प्रत्यर्थी का नाम न्यायालय का नाम विषय मामले का संक्षेप विस्तृत निर्णय
A1 सिविल अपील सं. 5789/2022(SLP (C) No. 1118/2022से उत्पन्न) सेंट मैरी एजुकेशन सोसाइटी एवम् अन्य राजेन्द्र प्रसाद भार्गव एवम् अन्य माननीय उच्चतम न्यायालय स्कूल प्रबंधन और उसके कर्मचारियों के बीच सेवा विवाद श्री राजेन्द्र प्रसाद भार्गव एक अल्पसंख्यक विद्यालय में प्राचार्य थे जिनकी सेवाएं स्कूल प्रबंधन ने अनुशासनहीनता के आधार पर समाप्त कर दी थी। श्री राजेंद्र प्रसाद ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत सेवा समाप्ति आदेश के खिलाफ मध्य प्रदेश के माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष एक रिट याचिका प्रस्तुत की। माननीय एकल न्यायाधीश ने याचिका को इस प्रतिविरोध के साथ खारिज कर दिया कि रिट याचिका एक निजी संस्थान के खिलाफ अनुच्छेद 226 के तहत समर्थनीय नहीं है। मध्य प्रदेश खंडपीठ के माननीय उच्च न्यायालय ने रिट अपील संख्या 485/2017 में एक विपरीत दृष्टिकोण रखा कि रिट याचिका संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत सुनवाई योग्य है। यह मामला भारत के माननीय उच्चतम न्यायालय में पहुंचा, जहां माननीय SCI ने कहा कि चूंकि स्कूल संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत 'राज्य' नहीं है, इसलिए संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट समर्थनीय नहीं है और एकल न्यायाधीश के दृष्टिकोण को बनाये रखा। विस्तृत आदेश के अवलोकन हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें। (524 KB)
A2 OA संख्या 3031/2017 सुश्री चित्रा यादव अध्यक्ष, सीबीएसई एवं यूनियन ऑफ इण्डिया केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण, प्रधान पीठ दिल्ली सीबीएसई के साथ भर्ती विवाद आवेदक ओबीसी श्रेणी से संबंधित है और सीबीएसई में जूनियर अकाउंटेंट के पद के लिए आवेदन किया। आवेदक 31.05.2015 को लिखित परीक्षा में उपस्थित हुई, जिसमें उसे अर्हता प्राप्त घोषित किया गया और 05.12.2015 को साक्षात्कार में उपस्थित हुई। हालांकि, नियुक्त उम्मीदवारों की सूची में उनका नाम नहीं आया। आवेदक के प्रतिरोध के अनुसार ओबीसी श्रेणी के सभी उम्मीदवारों को हटाने के लिए एक छद्म प्रक्रिया अपनाई गई। आवेदक ने माननीय CAT के समक्ष प्रार्थना की कि वह आवेदक को कनिष्ठ लेखाकार के पद के लिए अन्य नियुक्त उम्मीदवारों के साथ नियुक्ति आदेश जारी करें और नियमों के अनुसार उसके वेतन और अन्य लाभों के संबंध में सभी परिणामिक लाभ, वरिष्ठता, पदोन्नति और वित्तीय लाभ प्रदान करने का निर्देश दें। माननीय के.प्र.अ. ने इसी तरह के मामलों में कई निर्णयों का संदर्भ लेकर कहा कि आवेदक ने चयन समिति की ओर से आवेदक को नौकरी प्रदान किये जाने की उम्मीद करते हुए कभी भी साक्षात्कार से पहले या साक्षात्कार के समय चयन प्रक्रिया के बारे में सवाल नहीं उठाया। इसलिए OA को निरस्त कर दिया गया। विस्तृत आदेश के अवलोकन हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें। (412 KB)
A3 रिट याचिका (सि) 8552/2012 आरुषी गोयल केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड दिल्ली उच्च न्यायालय परीक्षा/पुनरीक्षण संबंधी मामला वाणिज्य धारा की एक छात्रा मार्च 2017 में प्रत्यर्थी/सीबीएसई द्वारा आयोजित बारहवीं कक्षा की एआईएसएससीई परीक्षा में शामिल हुई थी। प्रत्यर्थी द्वारा 13.09.2017 को किए गए मूल्यांकन की प्रकृति से व्यथित होकर, याचिकाकर्ता ने न्यायालय के समक्ष एक सिविल रिट याचिका संख्या 8552/2017 दाखिल की थी जिसमें प्रत्यर्थी को अर्थशास्त्र और अंग्रेजी (कोर) में उसकी उत्तर पुस्तिकाओं का उचित तरीके से पुनर्मूल्यांकन करने और पुनर्मूल्यांकन के बाद उक्त उत्तर पुस्तिकाओं की एक प्रति प्रदान करने के निर्देश देने की मांग की। माननीय न्यायालय ने याचिका को योग्य न पाते हुए खारिज कर दिया। विस्तृत आदेश के अवलोकन हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें। (711 KB)
A4 रिट याचिका (सि) 6123/2018 & CM APPL. 23758/2018 श्रीमति खजानी देवी एजुकेशन सोसाइटी केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्डएवम् अन्य दिल्ली उच्च न्यायालय परीक्षा/अनुचित साधनके प्रयोग संबंधी मामला यह मामला स्कूल के कुछ शिक्षकों द्वारा एआईएसएससीई-2018 के प्रश्न पत्र के लीक होने से जुड़ा है। उचित जांच के बाद, बोर्ड ने आदेश दिनांक 09.05.2018 के तहत स्कूल की अनंतिम संबद्धता को वापस लेने का आदेश जारी किया। स्कूल ने सीबीएसई द्वारा अस्थायी संबद्धता वापस लेने के खिलाफ उच्च न्यायालय को अनुरोध किया। माननीय न्यायालय ने अपने आदेश दिनांक 08.01.2019 द्वारा स्कूल की मान्यता रद्द करने के बोर्ड के प्रतिविरोध को स्वीकार कर लिया। विस्तृत आदेश के अवलोकन हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें। (276 KB)
A5 सिविल अपील सं. 11230/ 2018 (SLP (C) No. 18525 of 2018 से उत्पन्न) केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्डएवम् अन्य टी के रंगराजन व अन्य माननीय उच्चतम न्यायालय परीक्षा/शैक्षणिक मामला याचिकाकर्ताओं की उच्च न्यायालय के समक्ष मुख्य शिकायत यह है कि अंग्रेजी प्रश्नों के तमिल अनुवाद ने उन्हें गुमराह किया। अनुवाद का अर्थ अंग्रेजी के प्रश्नों के समान नहीं था, क्योंकि तमिल में प्रयुक्त कुछ शब्दों का अंग्रेजी से सटीक अनुवाद नहीं किया गया था। इससे गलत उत्तर आए। ऐसा होने से, याचिकाकर्ताओं ने उन सभी छात्रों को 'ग्रेस मार्क्स' देने की प्रार्थना की, जिन्होंने NEET-UG, 2018 की परीक्षा तमिल माध्यम में सभी 49 प्रश्नों के लिए दी थी, जिसमें ऐसी त्रुटियां हुई थीं। सीबीएसई ने समतुल्य कठिनाई के सिद्धांत के रूप में अपनाई गई पद्धति को उचित ठहराया। हाईकोर्ट ने तमिल माध्यम के सभी 49 प्रश्नों के लिए ग्रेस मार्क्स देने का आदेश दिया था। खंड न्यायपीठ ने एकल न्यायाधीश के विचार को बरकरार रखा। भारत के माननीय उच्चतम न्यायालय ने अपने दिनांक 22.11.2018 के आदेश द्वारा उच्च न्यायालय के आदेश को निरस्त कर दिया। विस्तृत आदेश के अवलोकन हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें। (74.1 KB)
A6 LPA 289/2018 केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड मीनाक्षी शर्मा व अन्य दिल्ली उच्च न्यायालय संयुक्त प्रवेश परीक्षा (JEE) मामला संयुक्त प्रवेश परीक्षा प्रक्रिया 01.01.2018 को शुरू हुई। 24.04.2018 को प्रश्नों की उत्तर कुंजी प्रकशित हुई जिसको 03 दिनों के भीतर चुनौती दी जा सकती थी। याचिकाकर्ता ने फिजिक्स और केमिस्ट्री सेक्शन के चार उत्तरों पर आपत्ति जताई। याचिकाकर्ता की आपत्तियों को स्वीकार नहीं किया गया। याचिकाकर्ता ने इस प्रतिरोध के साथ उच्च न्यायालय में WP 5157/2018 दाखिल किया कि उसके द्वारा प्राप्त विशेषज्ञ सलाह के अनुसार उसके मामले में प्रश्नों के चार विकल्पों के संबंध में अंक गलतदिये गये। माननीय उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता को परीक्षा में उपस्थित होने की सशर्तअनुमति दीकिउपस्थिति याचिका के परिणाम के अधीन रहेगी। बोर्ड ने इस आदेश को खंड न्यायपीठ के समक्ष चुनौती दी जिसके तहत खंड न्यायपीठ ने आदेश दिनांक 18.05.2018 के तहत WP 5157/2018 में एकल न्यायाधीश के आदेश को खारिज कर दिया। विस्तृत आदेश के अवलोकन हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें। (513 KB)
A7 रिट याचिका (सि) 4454/2017 ट्रिनिटी अकादमी केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्डएवम् अन्य दिल्ली उच्च न्यायालय संबद्धता से संबंधित मामला याचिकाकर्ता एक स्कूल है जो सीबीएसई से संबद्धता चाहता है। याचिकाकर्ता स्कूल ने संबद्धता के लिए जुलाई, 2014 में ऑनलाइन आवेदन किया था। याचिकाकर्ता को एनसीएमईआई अधिनियम 2004 की धारा 2(जी) के तहत 16.11.2016 को अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान घोषित किया गया था। 27.12.2016 को संबद्धता की मांग करने वाले याचिकाकर्ता के आवेदन को राज्य सरकार द्वारा जारी की जाने वाली एनओसी के अभाव में सीबीएसई द्वारा अस्वीकार कर दिया गया था। याचिकाकर्ता स्कूल का कहना था कि एनसीएमईआई के दिनांक 18.01.2017 के आदेश के अनुसरण में याचिकाकर्ता स्कूल द्वारा एनसीएमईआई अधिनियम की धारा 12ए के साथ पठित धारा 10(3) के तहत दिनांक 09.02.2017 को एक अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त किया गया था, जिसे प्रत्यक्षदर्शी को विधिवत अग्रेषित किया गया था लेकिन उस पर विचार नहीं किया गया। उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता पर लागत के साथ याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि NCMEI अधिनियम 'विश्वविद्यालय' पर लागू होता है जबकि याचिकाकर्ता एक स्कूल है। विस्तृत आदेश के अवलोकन हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें। (271 KB)
A8 रिट याचिका (सि)2891 of 2016 (O&M) प्रिया मान विश्वविद्यालय अनुदान आयोग व केमाशिबो पंजाब एवम् हरियाणा उच्च न्यायालय, चंडीगढ़ यूजीसी-नेट परीक्षा/शैक्षणिक मामला सीबीएसई ने सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति के लिए पात्रता निर्धारित करने के लिए 28.12.2014 को यूजीसी-नेट 2014 का आयोजन किया। याचिकाकर्ता ने इस रिट याचिका के माध्यम से दिनांक 30.12.2015 की परिशोधित उत्तर कुंजी में चार प्रश्नों के उत्तरों को चुनौती दी और सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति की पात्रता के लिए अपने परिणाम को 'अर्हता प्राप्त' घोषित करने की प्रार्थना की। याचिकाकर्ता ने केवल कुछ किताबों पर भरोसा किया है न कि विशेषज्ञ रिपोर्ट पर। माननीय उच्च न्यायालय ने योग्य न पाए जाने पर रिट याचिका को खारिज कर दिया। विस्तृत आदेश के अवलोकन हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें। (153 KB)
A9 सिविल अपील संख्या 4908/2006 सुनील ओरांव (अवयस्क) अभिभावकों के माध्यम से व अन्य केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्डएवम् अन्य माननीय उच्चतम न्यायालय परीक्षा/संबद्धता से संबंधित मामला यह रिट अपील 1 मार्च, 2006 को आयोजित होने वाली परीक्षा में शामिल होने के लिए कैंब्रिज स्कूल, टाटीसिलवाई, रांची के दसवीं कक्षा के 159 छात्रों और बारहवीं कक्षा के 121 छात्रों से संबंधित है। प्रारंभ में विद्वत् एकल न्यायाधीश ने रिट याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया कि स्कूल सीबीएसई से संबद्ध नहीं था और इसलिए, मांगा गया कोई निर्देश नहीं दिया जा सकता था। विद्वत् एकल न्यायाधीश के निर्णय से क्षुब्ध होकर, पत्र पेटेंट के खंड 10 के तहत अपील दाखिल की गई है और उसी विचार का समर्थन किया गया था। इसके बाद भारतीय उच्चतम न्यायालय के समक्ष रिट अपील इस दृष्टि से दाखिल की गई थी कि बिना किसी गलती के, लगभग 300 छात्रों के शैक्षणिक करियर को खतरे में डाला जा रहा है। माननीय उच्चतम न्यायालय ने रिट अपील को खारिज कर दिया और कहा कि अंततः अंतिम पीड़ित निर्दोष छात्र हैं, लेकिन यह अपीलकर्ता को राहत देने का आधार नहीं हो सकता है। विस्तृत आदेश के अवलोकन हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें। (29.6 KB)
A10 सिविल अपील सं. 3905/ 2011 (अन्य संबद्ध मामलों सहित) जिज्ञा यादव (अवयस्क) अभिभावक/पिता श्री हरि सिंह के माध्यम से केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड एवम् अन्य माननीय उच्चतम न्यायालय सीबीएसई दस्तावेजों में त्रुटि/परिवर्तन से संबंधी मामले विभिन्न छात्रों ने अपने नाम, जन्म तिथि आदि को बदलने/संशोधित करने के अनुरोध के साथ विभिन्न उच्च न्यायालयों को निवेदन किया, जिसके असमान परिणाम सामने आए और समूह में अपीलें भारत के माननीय उच्चतम न्यायालय के समक्ष दाखिल की गईं। भारत के उच्चतम न्यायालय ने विस्तृत विश्लेषण के माध्यम से उम्मीदवार का नाम, माता-पिता का नाम और जन्म तिथि को बदलने/सुधार करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए। विस्तृत आदेश के अवलोकन हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें। (661 KB)
A11 सिविल अपील सं. 7024/ 2011 सचिव, ऑल इण्डिया प्री-मेडिकल/प्री-डेंटल एक्जामिनेशन, सीबीएसई व अन्य खुशबू श्रीवास्तव व अन्य माननीय उच्चतम न्यायालय उत्तरपुस्तिकाओं के पुनःजाँच, पुनः मूल्यांकन संबंधी मामला सीबीएसई द्वारा आयोजित एआईपीएमटी की उत्तर पुस्तिकाओं की पुनः जांच/पुनर्मूल्यांकन का कोई प्रावधान नहीं होने से व्यथित प्रत्यर्थी द्वारा मामला दाखिल किया गया था। प्रत्यर्थी ने माननीय न्यायालय से सीबीएसई को उसकी उत्तर पुस्तिकाओं का पुनर्मूल्यांकन करने और अंकों का पुनः योग करने और परिणाम प्रकाशित करने का निर्देश देने की मांग की। माननीय उच्चतम न्यायालय ने बोर्ड के पक्ष में याचिका खारिज कर दी। विस्तृत आदेश के अवलोकन हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें। (121 KB)
A12 सिविल अपील सं. 4971/2022 @ SLP (C) No. 11651/2021 केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्डएवम् अन्य केशव नारायण व अन्य माननीय उच्चतम न्यायालय उत्तरपुस्तिकाओं के पुनःजाँच/पुनः मूल्यांकन संबंधी मामला माननीय उच्च न्यायालय पटना में के न्यायालय के समक्ष पुनर्मूल्यांकन के लिए सीबीएसई के कार्य रीतियों का पालन किए बिना उत्तर पुस्तिकाओं के पुनर्मूल्यांकन का मामला दायर किया गया था। भारत के माननीय उच्चतम न्यायालय ने बोर्ड के पक्ष में सिविल अपील की अनुमति दी और एकल न्यायाधीश और खंड न्यायपीठ के आदेश को अपास्त कर दिया और बोर्ड के इस विचार को बरकरार रखा कि 33 लाख उम्मीदवार परीक्षा देते हैं और यदि इस प्रक्रिया का सख्ती से पालन नहीं किया जाता है, पुनर्मूल्यांकन प्रक्रिया अपने आप में अव्यवहार्य हो जाएगी। विस्तृत आदेश के अवलोकन हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें। (47.7 KB)
A13 रिट याचिका (सि) 522/2021 ममता शर्मा केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड माननीय उच्चतम न्यायालय कोविड महामारी से व्युत्पन्न परिस्थितियों में परीक्षा के संचालन से संबंधी मामला भारत के माननीय उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश दिनांक 17.06.2021 द्वारा बारहवीं कक्षा की परीक्षा 2020-2021 के लिए अंकन योजना के लिए बोर्ड की नीति को मंजूरी दी और अपने आदेश दिनांक 22-06-2021 द्वारा परीक्षा आयोजित करने की दलील को खारिज कर दिया और यह बरकरार रखा कि बोर्ड एक स्वायत्त निकाय है और परीक्षा आयोजित करने या न करने का तरीका तय करने के लिए स्वतंत्र है। बोर्ड के लिए बाध्यता नहीं है कि अन्य बोर्डों द्वारा अपनाए गए निर्णय को माना जाये। विस्तृत आदेश दिनांक 17-06-2021 के अवलोकन हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें। (65.0 KB)

विस्तृत आदेश दिनांक 22-06-2021 के अवलोकन हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें। (68.9 KB)
A14 2024 DoJ का WP (C) नंबर 3578: 16 अप्रैल, 2024 रेवंत अहलावत केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड दिल्ली उच्च न्यायालय नई दिल्ली जन्मतिथि में सुधार इस रिट याचिका के माध्यम से, याचिकाकर्ता ने अपनी जन्मतिथि 14.09.2000 (जैसा कि माध्यमिक विद्यालय परीक्षा प्रमाणपत्र में दर्ज है) से 14.09.1999 तक सुधारने की मांग की है। याचिकाकर्ता का दावा था कि उसका मूल जन्म प्रमाणपत्र एक कार चोरी में खो गया था। याचिकाकर्ता के पिता ने जीएनसीटीडी में नए जन्म प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किया था। नये जन्म प्रमाण पत्र में जन्मतिथि 14.09.2000 अंकित थी। इसके बाद, याचिकाकर्ता ने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी से स्नातक किया और 2021-22 में भारतीय सैन्य अकादमी में शामिल हो गया। याचिकाकर्ता ने पासपोर्ट सेवा केंद्र, पुणे का दौरा किया, जहां उसे पता चला कि उसके नाम पर 14.09.1999 जन्मतिथि के साथ एक पासपोर्ट पहले ही जारी किया जा चुका है। इसके बाद, याचिकाकर्ता ने दिल्ली नगर निगम की वेबसाइट पर जाकर एक मूल 'सही, जन्म प्रमाण पत्र' प्राप्त किया। इसके आधार पर दूसरे जन्म प्रमाण पत्र में अपनी जन्मतिथि में सुधार की मांग की। माननीय न्यायालय ने मामले पर फैसला सुनाते हुए निम्नलिखित टिप्पणी के साथ WP को खारिज कर दिया: (ए) याचिकाकर्ता ने न तो स्कूल से संपर्क किया और न ही उसे डब्ल्यूपी में एक पक्ष के रूप में शामिल किया; (बी) सीबीएसई द्वारा निर्दिष्ट सीमा अवधि; (सी) याचिकाकर्ता के दो जन्म प्रमाण पत्र, दोनों सरकारी अधिकारियों द्वारा जारी किए गए; (डी) अपने मामले का समर्थन करने के लिए अन्य सार्वजनिक दस्तावेजों का गैर-उत्पादन इसके अलावा, इस फैसले के पैरा 12 में उच्च न्यायालय ने जिग्या यादव मामले में फैसले को लागू करने के लिए 1 वर्ष की अवधि (सीबीएसई द्वारा निर्धारित) को पवित्र माना है। Click here for detailed Order (2.12 MB)

तालिका B

क्रम सं. मामला क्र. याचिकाकर्ता का नाम प्रत्यर्थी का नाम न्यायालय का नाम विषय मामले का संक्षेप विस्तृत निर्णय
B1 सिविल अपील सं.367/2017 रन विजय सिंह व अन्य उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य माननीय उच्चतम न्यायालय उत्तर कुंजिका के उत्तरों को चुनौती देने से संबंधित यूपी माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड द्वारा टीजीटी के पदों पर भर्ती के लिए आवेदन आमंत्रित किए गए थे। गलत मूल्यांकन के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय में 77 रिट याचिकाओं का एक बैच दाखिल किया गया था। उच्च न्यायालय के विद्वत एकल न्यायाधीश ने व्यक्तिगत रूप से सात प्रश्नों की जांच की और सात प्रश्नों के उत्तर में कुछ त्रुटियों को देखते हुए इन 77 रिट याचिकाओं की उत्तर पुस्तिकाओं की फिर से जांच करने का निर्णय पारित किया। अपील न्यायपीठ ने भी इसी विचार को बरकरार रखा। इसके बाद यूपीएसईएसएस बोर्ड ने भारत के माननीय उच्चतम न्यायालय के समक्ष सिविल अपील दायर की, जहां माननीय उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश दिनांक 11.12.2017 में उल्लेख किया कि न तो विद्वत एकल न्यायाधीश और न ही उच्च न्यायालय की खंड न्यायपीठ संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत न्यायिक समीक्षा की शक्तियों का प्रयोग करते हुए परीक्षकों के दृष्टिकोण के बदले अपना दृष्टिकोण देने और उम्मीदवारों को कोई अतिरिक्त अंक प्रदान के लिए विचार कर सकती थी क्योंकि ये विशुद्ध रूप से शैक्षणिक मामले हैं। विस्तृत आदेश के अवलोकन हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें। (387 KB)
B2 R/Special Civil App. No. 8463/2022 मनीषकुमार रामेशचन्द्र पारेख गुजरात राज्य गुजरात उच्च न्यायालय, अहमदाबाद वरिष्ठता का मुद्दा याचिकाकर्ताओं को 2010 में पांच साल की अवधि के लिए निश्चित वेतन पर राजस्व तलती के रूप में नियुक्त किया गया था। तत्पश्चात, दिनांक 11.04.2016 के एक आदेश द्वारा याचिकाकर्ता को सेवा में नियमित कर दिया गया। नियमितीकरण के बाद स्थानांतरण के अनुरोध पर याचिकाकर्ता द्वारा वरिष्ठता खोने की वचनबद्धता दिए जाने पर याचिकाकर्ता को स्थानांतरित कर दिया गया था। याचिकाकर्ता ने वरिष्ठता के प्रयोजनों के लिए नियमित आधार पर अपनी सेवा के दो वर्ष खो दिए। तत्पश्चात, राज्य 18.01.2017 का एक संकल्प, जिसमें ऐसे पदधारियों को 05 वर्ष की अवधि पर विचार करने की नीति प्रदान की गई थी जो निर्धारित वेतन पर नियुक्त किए गए थे। यह उनके नियमित होने की तिथि से वरिष्ठता, पदोन्नति, उच्चतर वेतनमान और सेवांत प्रसुविधाओं के उद्देश्य के लिये था। वर्तमान याचिकाकर्ता जो संकल्प से पहले नियुक्त किए गए थे, उनके स्थानांतरण के कारण न केवल उनकी दो साल की वरिष्ठता खो दी जाएगी, बल्कि पिछले पांच वर्षों का भी अन्य उद्देश्यों के लिए कोई सम्मान और लाभ नहीं प्राप्त होगा। इसलिए नीति को चुनौती दी जा रही है। माननीय न्यायालय ने माना कि हो सकता है कि वचनबद्धता में ऐसा कोई आशय न हो जब याचिकाकर्ताओं ने वर्ष 2015 में इस तरह इस तरह की वचनबद्धता दी थी जब उन्होंने स्थानांतरण का विकल्प चुना था। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को राहत दी है। विस्तृत आदेश के अवलोकन हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें। (331 KB)
B3 रिट याचिका (सि) 572/2020 विश्व मोहन DoPT & Ors दिल्ली उच्च न्यायालय भर्ती से संबंधित मामला याचिकाकर्ता ने दृष्टि बाधित श्रेणी के तहत वर्ष 2015 के लिए अखिल भारतीय सेवा की भर्ती के लिए आवेदन किया था। उनकी चिकित्सा जांच की गई और डॉक्टर ने उनकी बाधाग्रस्तता/दिव्यांगता को 20% के रूप में प्रमाणित किया। अपीलीय बोर्ड द्वारा उसकी जांच की गई जिसमें भी उसकी निःशक्तता 20% पाई गई। डीओपीटी द्वारा याचिकाकर्ता की उम्मीदवारी रद्द कर दी गई क्योंकि न्यूनतम बाधा आवश्यकता 40% है। याचिकाकर्ता ने चिकित्सा रिपोर्ट और डीओपीएण्डटी द्वारा पारित आदेश को चुनौती देते हुए ट्रिब्यूनल से निवेदन किया। याचिकाकर्ता ने 26.02.2016 के एक प्रमाण पत्र पर भरोसा किया, जो एम्स में उनकी चिकित्सा जांच के दौरान प्राप्त हुआ था, जिसके अनुसार उनकी बाधाग्रस्तता 75% आंकी गई थी। लेकिन ट्रिब्यूनल ने OA को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता ने डब्ल्यू.पी.(सी) 12481/2018 द्वारा ट्रिब्यूनल के दिनांक 27.09.2018 के फैसले का विरोध किया। माननीय उच्च न्यायालय ने कई मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर ट्रिब्यूनल के आदेश को अपास्त कर दिया और उम्मीदवार की उम्मीदवारी पर विचार करने का निर्देश दिया। विस्तृत आदेश के अवलोकन हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें। (410 KB)
B4 रिट याचिका (सि) 5202 of 2016 मृत्युन्जय शुक्ला केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्डएवम् अन्य मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय सेवा विवाद वर्तमान याचिका एक गैर-सहायता प्राप्त पब्लिक स्कूल के प्रधानाचार्य द्वारा दाखिल की गई थी, जो प्रत्यर्थी संख्या 2 और 3 की अवैध और मनमानी कार्रवाई से व्यथित होकर अपने सेवांत देयताओं का भुगतान नहीं करने के लिए की गई थी। इस मामले में रिट की संधार्यता पर न्यायालय द्वारा विचार किया गया है और माननीय न्यायालय ने माना है कि इस मामले में रिट संधार्य है क्योंकि संस्था राज्य द्वारा बनाए गए क़ानून द्वारा शासित है। विस्तृत आदेश के अवलोकन हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें। (475 KB)
B5 रिट याचिका (सि)1901/2015 बीरपाल सिंह नूतन मराठी वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय और अन्य दिल्ली उच्च न्यायालय सेवा विवाद याचिकाकर्ता को पीजीटी (गणित) के पद के लिए चयन समिति द्वारा नियुक्त किया गया था। उप-प्रधानाचार्य के पद के विरुद्ध उप-प्रधानाचार्य के रूप में पदोन्नति के लिए उन पर विचार नहीं किया गया था। इसलिए उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। माननीय उच्च न्यायालय ने कहा कि प्रत्येक भाषाई अल्पसंख्यक को अपनी संस्कृति और भाषा के संरक्षण का संवैधानिक अधिकार है। इस प्रकार, इसे उन शिक्षकों को चुनने का भी अधिकार है, जो पात्रता और योग्यता रखते हैं, जैसा भी प्रावधान/व्यवस्था की गई हो, वह भी उनके धर्म और समुदाय के तथ्य से प्रभावित हुए बिना और यह स्कूल प्रबंधन द्वारा परिभाषित प्रक्रिया द्वारा किया जा सकता है। योग्य और अर्हता प्राप्त शिक्षकों के चयन के समय भाषाई अल्पसंख्यक की वांछनीय योग्यताओं में से किसी एक वांछनीय योग्यता के रूप में भाषा और सांस्कृतिक संगतता की मांग वैध है। विस्तृत आदेश के अवलोकन हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें। (1.74 MB)
B6 रिट याचिका (सि)/2770/2016 अनिल सिंह व अन्य असम सरकार एवम् 04 अन्य गुवाहाटी उच्च न्यायालय सेवा विवाद यह मामला एक सरकारी कर्मचारी से संबंधित है, जिसकी दो पत्नियों के वारिस हैं, जहां दूसरी शादी हिंदू विवाह अधिनियम के अनुसार शून्य है, जिसकी मृत्यु बिना वसीयत के हो गई, जहां 'क़ानूनी वारिस' तय करने के लिए उपदान की राशि जारी नहीं की गई है। माननीय उच्च न्यायालय ने दूसरी शादी से बच्चों को कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में तय किया है, हालांकि दूसरी शादी शून्य थी और दूसरी पत्नी से बच्चों को कानूनी वारिस मानते हुए सभी कानूनी वारिसों के बीच उपदान की राशि वितरित करने का आदेश दिया। विस्तृत आदेश के अवलोकन हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें। (86.6 KB)
B7 रिट याचिका (सि) No. 11021 of 2016 सुधीर राम व अन्य केरल राज्य सड़क परिवहन निगम और अन्य केरल उच्च न्यायालय, एर्नाकुलम सेवा विवाद यह मामला एक ऐसे व्यक्ति के वेतन से संबंधित है जिसमें माननीय उच्च न्यायालय ने कहा था कि सेवारत सरकारी कर्मचारी का वेतन उसके कनिष्ठों के वेतन से कम नहीं हो सकता। विस्तृत आदेश के अवलोकन हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें। (104 KB)
B8 रिट याचिका (सि) 5527 of 2022 राजू प्रॉसाद सर्मा असम राज्य गुवाहाटी उच्च न्यायालय परीक्षा में अनुचित साधनों के प्रयोग संबंधी मामला असम सरकार के प्रधान सचिव द्वारा जारी अधिसूचना दिनांक 18.08.2022, जिसमें राज्य द्वारा किए गए भर्ती अभियान के संबंध में परीक्षा के घंटों के दौरान मोबाइल इंटरनेट कनेक्टिविटी को अस्थायी रूप से निलंबित किया गया, को इंटरनेट का उपयोग करने के मौलिक आधार पर वर्तमान रिट याचिका में चुनौती दी गई है। माननीय न्यायालय ने अंतरिम राहत के लिए अर्जी खारिज कर दी। विस्तृत आदेश के अवलोकन हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें। (100 KB)
B9 सिविल संदर्भ सं.1/2022 खंड पीठरिट याचिका (सि) सं.7343/2019के साथ प्रियंका श्रीमली राजस्थान राज्य, सचिव, कार्मिक विभाग, सचिवालय, जयपुर और अन्य राजस्थान उच्च न्यायालय, जोधपुर पीठ अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति से संबंधी मामला यह याचिका 1996 के नियमों के नियम 2(सी) के प्रावधानों को उस हद तक असंवैधानिक घोषित करने के लिए दाखिल की गई थी, जिसमें यह परिकल्पना की गई थी कि पति-पत्नी और बेटे के अलावा केवल 'अविवाहित बेटी' ही अनुकंपा नियुक्ति के लिए विचार करने की हकदार है। याचिकाकर्ता, मृतक सरकारी सेवक की विवाहित पुत्री ने मृतक की इकलौती संतान के रूप में अनुकम्पा नियुक्ति की मांग की, विवाह के बाद भी वह अपने माता-पिता के साथ रह रही थी और अब केवल पिता के साथ रह रही थी। हालाँकि, 1996 के नियमों के प्रावधानों के कारण, उसकी उम्मीदवारी को राज्य सरकार ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि विवाहित बेटी 1996 के नियमों के तहत अनुकंपा नियुक्ति के लिए पात्र नहीं है। तीन न्यायाधीशों की न्यायपीठ ने याचिकाकर्ता के पक्ष में आदेश दिया। विस्तृत आदेश के अवलोकन हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें। (172 KB)
B10 2003 की सिविल अपील संख्या 3911, 2002 की आरपी संख्या 2167 डीओजे: 04 सितंबर, 2009 बिहार विद्यालय परीक्षा समिति सुरेश प्रसाद सिन्हा भारत का सर्वोच्च न्यायालय नई दिल्ली जिला/राज्य/राष्ट्रीय उपभोक्ता निवारण फोरम/आयोग में सीबीएसई के खिलाफ दायर मुकदमों की रखरखाव विशेष अनुमति द्वारा यह अपील राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, नई दिल्ली के आरपी संख्या 2167/02 में दिनांक 24.10.2002 के आक्षेपित निर्णय और आदेश के खिलाफ दायर की गई थी। शिकायतकर्ता (यहाँ प्रतिवादी) ने बीएसईबी द्वारा अपने वार्ड के परिणाम की कथित घोषणा न करने पर जिला उपभोक्ता फोरम से मुआवजे की प्रार्थना की। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने फैसले के पैरा 10 में कहा कि - “परीक्षा आयोजित करने, उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन करने, परिणाम घोषित करने और प्रमाण पत्र जारी करने की प्रक्रिया एक ही वैधानिक गैर-व्यावसायिक कार्य के विभिन्न चरण हैं। इस कार्य को आंशिक रूप से वैधानिक और आंशिक रूप से प्रशासनिक के रूप में विभाजित करना संभव नहीं है। जब परीक्षा बोर्ड अपने वैधानिक कार्य के निर्वहन में परीक्षा आयोजित करता है, तो वह किसी भी उम्मीदवार को अपनी "सेवाएं" प्रदान नहीं करता है। न ही कोई छात्र जो बोर्ड द्वारा आयोजित परीक्षा में भाग लेता है, वह बोर्ड से किसी सेवा को विचारार्थ किराये पर लेता है या प्राप्त करता है। दूसरी ओर, एक उम्मीदवार जो बोर्ड द्वारा आयोजित परीक्षा में भाग लेता है, वह एक ऐसा व्यक्ति होता है जिसने अध्ययन का एक कोर्स किया है और जो बोर्ड से उसका परीक्षण करने का अनुरोध करता है कि क्या उसने घोषित होने के लिए पर्याप्त ज्ञान प्राप्त कर लिया है। शिक्षा के उक्त पाठ्यक्रम को सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद; और यदि हां, तो अन्य परीक्षार्थियों की तुलना में उसकी स्थिति या रैंक या योग्यता निर्धारित करें। इसलिए यह प्रक्रिया किसी छात्र द्वारा सेवा प्राप्त करना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए बोर्ड द्वारा आयोजित एक सामान्य परीक्षा में भाग लेना है कि क्या वह माध्यमिक शिक्षा पाठ्यक्रम को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए योग्य और योग्य है। छात्र द्वारा भुगतान किया गया परीक्षा शुल्क किसी भी सेवा का लाभ उठाने के लिए प्रतिफल नहीं है, बल्कि परीक्षा में भाग लेने के विशेषाधिकार के लिए भुगतान किया गया शुल्क है। उसमें उल्लिखित निर्णयों में निर्धारित विभिन्न निर्णयों और सिद्धांतों पर उचित विचार के बाद, माननीय सर्वोच्च न्यायालय का मानना ​​है कि बिहार स्कूल परीक्षा बोर्ड उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 और निर्धारित के तहत परिभाषित कोई 'सेवा' प्रदान नहीं कर रहा है। बोर्ड या विश्वविद्यालय के खिलाफ उत्तरदाताओं द्वारा दायर की गई शिकायतें सुनवाई योग्य नहीं हैं। विस्तृत आदेश के अवलोकन हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें। (161 KB)
B11 2010 की सिविल अपील संख्या 431, 2007 DoJ की WA संख्या 730 में: 01 सितंबर, 2022 रामकृष्ण आश्रम एवं अन्य। शाश्वत पांडे एवं अन्य भारत का सर्वोच्च न्यायालय नई दिल्ली केंद्र/राज्य सरकार के समान संबद्ध गैर-सहायता प्राप्त/स्वतंत्र स्कूलों/संस्थानों के शिक्षण कर्मचारियों के लिए वेतन का निर्धारण। वर्तमान अपील में चुनौती एक फैसले को लेकर है। 17.01.2008 को मध्य प्रदेश के जबलपुर में उच्च न्यायालय के माननीय डीबी द्वारा डब्ल्यूए नंबर 73/2007 में पारित किया गया, जिसके तहत शिक्षकों द्वारा पसंद की गई रिट अपील को अपीलकर्ताओं को मानदंडों के अनुसार वेतनमान का भुगतान करने का निर्देश देने की अनुमति दी गई थी। सीबीएसई द्वारा निर्धारित। उच्च न्यायालय के समक्ष अपीलकर्ताओं का रुख यह था कि प्रतिवादी अनुबंध के आधार पर काम कर रहे थे और इसलिए, सीबीएसई द्वारा तय किए गए मानदंड लागू नहीं होंगे क्योंकि यह नियमित रूप से नियुक्त शिक्षकों पर लागू होते हैं। उत्तरदाताओं के विद्वान वकील द्वारा इस तथ्य का खंडन नहीं किया जा सका। उपरोक्त को ध्यान में रखते हुए, संक्षिप्त प्रश्न पर अपील की अनुमति दी गई कि उत्तरदाता सीबीएसई से संबद्ध स्कूल में नियमित वेतनमान के हकदार नहीं हैं। आक्षेपित निर्णय दि. 17.01.2008 को उच्च न्यायालय द्वारा निरस्त किया जाता है। विस्तृत आदेश के अवलोकन हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें। (3.11 MB)