स्‍वतंत्रता-पूर्व युग

कलकत्‍ता विश्‍वविद्यालय आयोग (1917-19) जिसे सामान्‍यतया सदलर आयोग कहा जाता है, अस्तित्‍व में आने के परिणामस्‍वरूप देश के विभिन्‍न भागों में मा‍ध्‍यमिक शिक्षा बोर्ड बनने लगे थे। यू.पी. बोर्ड ऑफ हाई स्‍कूल और इंटरमीडिएट एजुकेशन, राजपूताना, मध्‍य भारत(सेंट्रल इंडिया) और ग्‍वालियर सहित एक बड़े क्षेत्र के हित को देखने वाला हुए इस तरह का पहला बोर्ड स्‍थापित किया गया था। हालांकि एक ऐसी स्थिति आई कि जब उस बोर्ड को लगा कि उसके लिए अतिरिक्‍त क्षेत्रीय जिम्‍मेदारी संभालना संभव नहीं था। इसलिए संयुक्‍त प्रान्‍त की सरकार ने भारत सरकार को अभ्‍यावेदन प्रस्‍तुत किया कि यू.पी. बोर्ड की अधिकारिता एक कुशल प्रशासन बनाए रखने में बहुत अधिक कमजोर थी और यह कि संयुक्‍त प्रांत के बाहरी क्षेत्रों से उम्‍मीदवारों को वर्ष 1927-28 से आगे बोर्ड की परीक्षा में प्रवेश नहीं दिया जाना चाहिए।

अभ्‍यावेदन प्रस्‍तुत करने के परिणामस्‍वरूप, भारत सरकार ने राजपूताना, मध्‍य भारत (सेंट्रल इंडिया) और ग्‍वालियर में रियासतों के प्रशासन के विचार हेतु दो विकल्‍प सुझाए। एक सुझाव था कि संबंधित सभी क्षेत्रों के लिए एक संयुक्‍त बोर्ड का गठन किया जाए और दूसरा सुझाव था कि इस प्रकार प्रभावित क्षेत्रों में से प्रत्‍येक के लिए एक अलग बोर्ड होना चाहिए।

संयुक्‍त बोर्ड के कई लाभ थे, उनमें से प्रशासन और परीक्षा दोनों पर व्‍यय में मितव्‍यता उनमें प्रमुख है तथा व्‍यापक प्रतिनिधित्‍व जो संबंधित सभी क्षेत्रों से उपलब्‍ध होगा। इसलिए यह निर्णय लिया गया कि सभी संबंधित क्षेत्रों हेतु एक संयुक्‍त बोर्ड विकसित किया जाना चाहिए। उसी रूप में बोर्ड हाई स्कूल एंड इंटरमीडिएट एडुकेशन, राजपूताना जिसमें, अजमेर-मेरवाड़ा, मध्‍य भारत (सेंट्रलइंडिया) और ग्‍वालियर शामिल है की वर्ष 1929 में भारत सरकार के एक संकल्‍प द्वारा स्‍थापना की गई थी। उस संकल्‍प के अधीन गठित बोर्ड ने राजपूताना में गवर्नर-जनरल के लिए एजेंट के साथ अजमेर में अपना मुख्‍यालय बनाया था तथा मुख्‍य आयुक्‍त, अजमेर-मेरवाड़ा, लेफ्टिनेंट कर्नल जी.डी. ओगिलवी नियंत्रक प्राधिकारी के रूप में थे एवं इसके अधिकार क्षेत्र में प्रशासित क्षेत्र और राज्‍यों के प्रतिनिधियों सहित कुल सदस्‍यता 38 थी।

बोर्ड के गठन ने माध्‍यमिक शिक्षा के महत्‍वपूर्ण क्षेत्र में अंतर्राज्‍यीय एकीकरण और सहयोग में एक साहसिक प्रयोग का प्रतिनिधित्‍व किया है। अजमेर-मेरवाड़ा के तत्‍कालीन मुख्‍य आयुक्‍त और बोर्ड के नियंत्रक प्राधिकरी ने 12 अगस्‍त, 1929 को अजमेर में आयोजित बोर्ड की पहली बैठक में दिए गए उद्घाटन भाषण का उपयुक्‍त अवलोकन किया गया: “यह नोट करना मेरे लिए विशेष खुशी की बात है कि बोर्ड का गठन, राजपूताना और मध्‍य भारत (सेंट्रल इंडिया) में शिक्षा की प्रगति और उन्‍नति में एक बड़ा कदम होने के अलावा, भारतीय राज्‍यों के लोगों के बीच एकमत सहयोग का एक सुखद उदाहरण है, जो हमारे श्रम में शामिल हो गए हैं”

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Interesting-Facts
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  • भवन वास्‍तुकला(बिल्डिंग आर्किटेक्‍चर) : कार्ल माल्‍टे वॉन हेंज, वास्‍तुकार, दिल्‍ली
  • वर्ष 1927 में इस क्षेत्र को बेंज इमली अजमेर(टोडरमल मार्ग) के नाम से जाना जाता था
  • नजूल भूमि का किराया रु.900/- प्रतिवर्ष (अजमेर सरकार का दिनांक 29.12.1954 का पत्र)
  • भूमि का क्षेत्रफल : 5551 वर्ग गज/ 49959 वर्ग फुट/ 464 वर्ग मीटर
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बोर्ड की स्‍थापना से राजपूताना, मध्‍य भारत (सेंट्रल इंडिया), ग्‍वालियर, अजमेर और मेरवाड़ा की रियासतों सहित विशाल प्रदेशों में माध्‍यमिक शिक्षा (सेकेंडरी एजुकेशन) का तेजी से विकास और विस्‍तार हुआ है। बोर्ड ने सक्षम और अनुभवी निरीक्षकों द्वारा अपनी ओर से समय-समय पर किए गए निरीक्षणों के माध्‍यम से मान्‍यता प्राप्‍त संस्‍थानों में शिक्षा की गुणवत्‍ता और मानक में सुधार पर भी विश्‍वसनीय कार्य किया है। इसी तरह बोर्ड ने वर्ष 1941 में तत्‍कालीन अध्‍यक्ष, डॉ. आई.सी. चटर्जी की पहल पर इसके प्रबंधन तथा नियंत्रण के अधीन अजमेर में स्‍नातकोत्‍तर शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय (पोस्‍ट-ग्रेजुएट ट्रेनिंग कॉलेज फॉर टीजर्स) की भी स्‍थापना की। महाविद्यालय (कॉलेज) ने वास्‍तविक आवश्‍यकता को पूरा किया और परिणामस्‍वरूप बोर्ड द्वारा व्‍यापक क्षेत्र में दी गई सेवा के माध्‍यम से शिक्षा के संबंध में काफी सुधार हुआ है। महाविद्यालय, जिसमें से वर्ष 1941 से वर्ष 1949 तक सैकड़ों प्रशिक्षित स्‍नातक शिक्षक निकले, इसे वर्ष 1950 में बंद कर दिया गया क्‍योंकि आगरा विश्‍वविद्यालय से संबद्ध कई ऐसे महाविद्यालयों के खुलने के कारण इसमें प्रवेश पाने के इच्‍छुक विद्यार्थियों की संख्‍या घटने लगी।

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बोर्ड ने वर्ष 1930 में पहली बार कला एवं विज्ञान में हाई स्कूल परीक्षा तथा इंटरमीडिएट की परीक्षाएं आयोजित की थी। शुरूआत में इसके 70 हाई स्कूल और 12 इंटरमीडिएट महाविद्यालय थे, लेकिन मान्‍यता प्राप्‍त संस्‍थानों की संख्‍या में वर्ष-दर-वर्ष तेजी से वृद्धि हुई है और वर्ष 1940 तक बोर्ड ने 124 हाई स्कूल और 20 महाविद्यालयों को मान्‍यता दी थी। वर्ष 1947 तक मान्‍यता प्राप्‍त हाई स्कूलों की संख्‍या बढ़कर 201 और महाविद्यालयों की संख्‍या 42 हो गई। इसी तरह वर्ष 1930 में परीक्षार्थियों की संख्‍या 3091, वर्ष 1940 में 6412 और वर्ष 1947 में बढ़कर 13770 हो गई।

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वर्ष 1947 में राजस्‍थान विश्‍वविद्यालय की स्‍थापना के साथ राजपूताना राज्‍य में महाविद्यालयों की परीक्षा इसके द्वारा आयोजित की जाने लगी। मध्‍य भारत (सेंट्रल इंडिया) ने वर्ष 1950-51 में अपना बोर्ड बनाया, जिसके परिणामस्‍वरूप इसकी सदस्‍यता में कमी आई। इस प्रकार बोर्ड का अधिकार क्षेत्र केवल अजमेर, भोपाल और विंध्‍य प्रदेश तक ही सीमि‍त था। बोर्ड का नाम भी बदलकर हाई स्कूल और इंटरमीडिएट शिक्षा बोर्ड (बोर्ड ऑफ हाई स्कूल और इंटरमीडिएट एजुकेशन), अजमेर, भोपाल और विंध्‍य प्रदेश कर दिया गया। भारत सरकार द्वारा वर्ष 1952 में इसका वर्तमान नाम “केंद्रीय माध्‍यमिक शिक्षा बोर्ड” कर दिया गया था और भाग-सी राज्‍यों और भाग-डी प्रदेशों में अपने अधिकार क्षेत्र का विस्‍तार करने के लिए बोर्ड के संविधान में संशोधन किया गया था। भाग-सी राज्‍यों तथा भाग-डी प्रदेशों के अलावा कुछ अन्‍य क्षेत्रों को शामिल करने के लिए वर्ष 1953 में बोर्ड के संविधान में संशोधन किया गया।

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इतिहास बना (हिस्‍ट्री इन मेकिंग) : ब्रिटिश राज प्राधिकारियों द्वारा वर्ष 1943 में भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के रूप में नियुक्‍त किए जाने वाले पहले भारतीय श्री सी.डी. देशमुख ने सी.बी.एस.ई अजमेर की आधारशिला रखी। इसके बाद उन्‍होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल में वित्‍त मंत्री के रूप में कार्य किया।

25 Years under the aegis of Dr. Zakir Hussain
वर्ष 1954 : डॉ. ज़ाकिर हुसैन के तत्‍वावधान में बोर्ड ने 25 वर्ष (रजत जयंती) मनाता है।

देश में विभिन्‍न शिक्षण संस्‍थानों के लिए अपनी सेवाएं उपलब्‍ध कराने हेतु माध्‍यमिक शिक्षा (सेकेंडरी एजुकेशन) के क्षेत्र में उपयोगी भूमिका निभाने के लिए बोर्ड को सक्षम करने की दृष्टि से और विद्यार्थियों की शैक्षिक आवश्‍यकताओं को पूरा करने के लिए, जिन्‍हें राज्‍य से दूसरे राज्‍य में जाना था, 1 जुलाई, 1962 को बोर्ड का पुनर्गठन किया गया और तत्‍कालीन दिल्‍ली बोर्ड ऑफ हायर सेकेंडरी एजुकेशन को केंद्रीय बोर्ड में मिला दिया गया और दिल्‍ली बोर्ड द्वारा मान्‍यता प्राप्‍त सभी शैक्षणिक संस्‍थानों को केंद्रीय बोर्ड द्वारा मान्‍यता प्राप्‍त संस्‍थान माना गया था।

इसके बाद, केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम भी बोर्ड में शामिल हो गए। यद्यपि केंद्रीय माध्‍यमिक शिक्षा बोर्ड का गठन एक स्‍वायत्‍त निकाय के रूप में किया गया था, लेकिन बोर्ड के संविधान के अनुसार इसका सर्वोच्‍च नियंत्रण भारत सरकार में निहित था, और नियंत्रक प्राधिकारी, सचिव (पहले जिसे शैक्षिक सलाहकार कहा जाता था), शिक्षा मंत्रालय (बाद में मानव संसाधन विकास मंत्रालय नया नाम दिया), भारत सरकार को किसी भी मामले पर बोर्ड के विचारों को संबोधित करने और संवाद करने का अधिकार दिया गया।

बोर्ड को मिडिल, सेकेंडरी और हायर सेकेंडरी विद्यालयों के बीच समन्‍वय बनाने के लिए मिडिल स्‍कूल शिक्षा के पाठ्यक्रम अनुदेश और पाठ्यक्रम(सेलेबि) के संबंध में केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासनों को सलाह देने की जिम्‍मेदारी भी सौंपी गई थी।

यह इस स्‍तर पर था कि बोर्ड को अखिल भारतीय उच्‍चतर माध्‍यमिक(हायर सेकेंडरी) परीक्षा के आयोजन का एक महत्‍वपूर्ण कार्य सौंपा गया था, जो एक ऐसे मॉडल को स्‍थापित करने के दोहरे प्रयोजन को पूरा करेगा जो माध्‍यमिक शिक्षा के विभिन्‍न राज्‍य बोर्डों का अनुकरण कर सकते हैं और उन विद्यार्थियों की विशेष आवश्‍यकताओं को पूरा कर सकते हैं जिनके माता-पिता किसी विशेष राज्‍य के स्‍थायी निवासी नहीं थे और इस तरह उन्‍हें समय-समय पर एक राज्‍य से दूसरे राज्‍य में जाना पड़ता था।

बोर्ड का कार्यालय नई दिल्‍ली के इंद्रप्रस्‍थ मार्ग पर एक किराए के भवन में खोला गया था। बोर्ड ने अजमेर में अपना पंजीकृत कार्यालय जारी रखा, जहां उसने वर्ष 1935 में एक बेहतरीन डिजाइन वाले भवन का निर्माण कराया था। वर्ष 1962 में सी.बी.एस.ई के साथ दिल्‍ली माध्‍यमिक शिक्षा बोर्ड के विलय पर बोर्ड का मुख्‍यालय नई दिल्‍ली स्‍थानांतरित कर दिया गया। उच्‍चतर माध्‍यमिक परीक्षा, दिल्‍ली योजना के अतिरिक्‍त बोर्ड ने उच्‍चतर माध्‍यमिक बहुउद्देशीय परीक्षा और उच्‍चतर माध्‍यमिक तकनीकी परीक्षा भी आयोजित की।

वर्ष 1963-64 में बोर्ड में सोलह राज्‍यों और एक केंद्र शासित प्रदेश के 436 विद्यालय संबद्ध थे। इसमें तेहरान, ईरान का एक विद्यालय भी शामिल था।

अब तक बोर्ड ने संबद्ध विद्यालयों के प्रशासनिक तथा शैक्षणिक निरीक्षण शुरू कर दिए थे। बोर्ड की गतिविधियों में शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम, शैक्षणिक क्षेत्रों में सेमिनार और कार्यशालाएँ भी बोर्ड की गतिविधियों में शामिल थीं।

वर्ष 1965-66 में बोर्ड ने केंद्र शासित प्रदेश दिल्‍ली में लड़कों के लिए चार विद्यालयों और लड़कियों के लिए तीन विद्यालयों में हायर सेकेंडरी परीक्षा में एक वर्षीय का पाठ्यक्रम शुरू किया।

वर्ष 1967 तक छह अतिरिक्‍त केंद्र शासित प्रदेश बोर्ड में शामिल हो गए।

वर्ष 1970 तक पूरे देश में 743 विद्यालयों ने सी.बी.एस.ई परिवार का गठन किया।

यह देखा जाएगा कि सी.बी.एस.ई शैक्षिक विचारों और नई स्‍थानीय आवश्‍यकताओं के क्षेत्र में नई वास्‍तविकताओं के जवाब में स्‍वयं को आकार(शेपिंग) देने और पुन: आकार(रिशेपिंग) देने के लिए मूलभूत (ऑर्गेनिक) विकास से गुजर रहा था।

वर्ष 1975 में सी.बी.एस.ई से संबद्ध विद्यालयों की संख्‍या 1000 को पार कर गई।

वर्ष 1977 में प्रथम अखिल भारतीय माध्‍यमिक(सेकेंडरी) विद्यालय परीक्षा तथा वर्ष 1979 में अखिल भारतीय वरिष्‍ठ विद्यालय प्रमाणपत्र परीक्षा साक्ष्‍य बनी। वर्ष 1982 में, सी.बी.एस.ई ने कंप्‍यूटर शिक्षा में एक अग्रणी पाठ्यक्रम विकसित किया जो इस क्षेत्र में एक बड़ी क्रांति लाया। इस अवधि के दौरान एक अन्‍य महत्‍वपूर्ण विकास सहोदय आंदोलन का शुभारंभ था। यह एक अनूठा आंदोलन था जिसने देखभाल और साझा करने की भावना और प्रगति करने हेतु सदस्‍य संस्‍थानों की ताकत के उपयोग को विकसित करने की आवश्‍यकता पर जोर दिया। बोर्ड ने वर्ष 1988 में प्रथम अखिल भारतीय प्री-मेडिकल और प्री-डेंटल प्रवेश परीक्षा आयोजित की जिसमें 77,000 उम्‍मीदवारों ने पंजीकरण कराया। 26 राज्‍यों और केंद्रशासित प्रदशों की राजधानियों में 157 परीक्षा केंद्र थे।

इस अवधि के दौरान बोर्ड ने राष्‍ट्रीय मुक्‍त विद्यालय शुरू किया था, जो उन विद्यार्थियों की आवश्‍यकताओं को पूरा करता था जो औपचारिक रूप से विद्यालयों में उपस्थित नहीं हो सकते थे। सी.बी.एस.ई से एन.आई.ओ.एस अलग हो गया और वर्ष 1989-90 में एक पूर्ण संगठन बन गया।

बोर्ड ने कुल अंकों के आधार पर टॉपर्स घोषित करने की प्रथा के साथ प्रत्‍येक विषय में स्‍कोर के 0.1% अंक प्राप्‍त करने वाले उम्‍मीदवारों को मेरिट प्रमाणपत्र प्रदान करने की एक नवीन योजना शुरू की थी।

वर्ष 1989 इतिहास में महत्‍वपूर्ण है क्‍योंकि सी.बी.एस.ई ने दिल्‍ली में प्रीति विहार में गगनचुंबी (हाई राइज) भवन में काम करना शुरू किया।

इसी वर्ष 1989 में ब्रिटिश काउंसिल के सहयोग से एक अद्वितीय शिक्षक अभियान सी.बी.एस.ई-ई.एल.टी परियोजना भी शुरू की गई थी और नए पैकेज में पहली परीक्षा दसवीं कक्षा के अंत में वर्ष 1993 में आयोजित की गई थी। नयी शिक्षा नीति 1986 की अपेक्षाओं को ध्‍यान में रखते हुए और शिक्षा की गुणवत्‍ता को और बेहतर बनाने के लिए भी, विभिन्‍न विषयों में पाठ्यक्रम (सेलेबि) और पाठ्यक्रमों की समीक्षा करने के लिए एन.सी.ई.आर.टी के सहयोग से वर्ष 1989 में बोर्ड द्वारा एक व्‍यापक प्रयोग किया गया था।

वर्ष 1990 में निवर्तमान विद्यार्थियों के लिए व्‍यापक स्‍तर पर उपलब्धि (सी.ओ.ए) का प्रमाणपत्र शुरू किया गया था। यह एक तरह से सतत और व्‍यापक विद्यालय आधारित मूल्‍यांकन (सी.सी.ई) की उत्‍पत्ति थी। बोर्ड ने इस वर्ष के दौरान कई व्‍यावसायिक (वोकेशनल) पाठ्यक्रम भी शुरू किए।

संबद्ध विद्यालयों की संख्‍या वर्ष 1990 में 3000 का आंकड़ा पार कर गई थी, और सबसे महत्‍वपूर्ण विदेशों में कई विद्यालयों को बोर्ड से संबद्ध कर दिया गया था।

बोर्ड द्वारा वर्ष 1991 में शुरू किया गया एक अन्‍य मेजर प्रोग्राम विशेष प्रौढ़ साक्षरता अभियान (एस.ए.एल.डी) था। बोर्ड ने अपने प्रशासन के विकेंद्रीकरण कार्यक्रम को शुरू किया और छह क्षेत्रीय कार्यालय दिल्‍ली, अजमेर, चंडीगढ़, इलाहाबाद, चेन्‍नई तथा गुवाहटी अस्त्तिव में आये।

वर्ष 1992 में कक्षा-X तथा कक्षा-XII की परीक्षाओं में सभी विषयों में प्रश्‍नपत्रों के मल्‍टीपल सेटों की शुरूआत देखी गई। वर्ष 1998 में बोर्ड ने विद्यार्थियों के लिए अपना फ्लैगशिप प्रोग्राम टेली हेल्‍पलाइन शुरू किया, जो परीक्षा से संबंधित तनाव से निपटने के लिए सकारात्‍मक मुकाबला करने वाला तन्‍त्र विकसित करने के लिए नि:शुल्‍क मनोवैज्ञानिक परामर्श प्रदान करता है।

वर्ष 1998 के दौरान स्‍वतंत्र विद्यालयों हेतु प्रतिस्‍पर्धी खेल कार्यक्रम भी शुरू किया गया था।

वर्ष 1999-2000 के दौरान पाठ्यक्रम संशोधन में एक और बड़ा सुधार ‘फ्रंटलाइन पाठ्यक्रम’ की शुरूआत की थी, जिसमें 10% अप्रचलित पाठ्यक्रम को संबंधित विषयों में नए विकास से बदल दिया गया था।

वर्ष 2000 में विद्यार्थियों को उनके परीक्षा परिणामों तक पहुंचने हेतु ई-मेल और इंटरनेट सेवा का बोर्ड द्वारा प्रावधान प्राप्‍त की गई एक सफलता थी। बोर्ड ने विदेशों में बसे भारतीय मूल के लोगों के लिए भारतीय भाषाओं और संस्‍कृति में अंतरराष्‍ट्रीय प्रत्‍यायन प्रमाणपत्र देने के लिए एक अंतरराष्‍ट्रीय प्रकोष्‍ठ भी स्‍थापित किया।

सी.बी.एस.ई द्वारा शिक्षकों और प्राचार्यों के योगदान को स्‍वीकार करने के लिए पहली बार शिक्षक पुरस्‍कार शुरू किये गये।

वर्ष 2001 में आई.आई.एम अहमदाबाद में रणनीति-संबंधी नेतृत्‍व में प्राचार्यों के सशक्तिकरण के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम की एक नई पहल की गई।

बोर्ड ने मई, 2002 में प्रथम अखिल भारतीय इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा सफलतापूर्वक आयोजन किया था।

वर्ष 2003 बोर्ड के प्‍लेटिनम जुबली वर्ष का प्रतीक है जो बोर्ड की गतिविधियों और सिद्धांत पर प्रथम दिवस डाक कवर, फिल्‍मों के विमोचन के साथ अन्‍य अधिक उत्‍साहपूर्ण तरीके से मनाया गया था। इस समारोह में भारत के तत्‍कालीन माननीय प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भाग लिया था, जिन्‍होंने राउज एवेन्‍यू में सी.बी.एस.ई., शिक्षा सदन की नये शैक्षणिक स्‍कंध (अकादमिक विंग) का उद्घाटन किया। प्‍लैटनिम जुबली वर्ष समारोह के दौरान भारत सरकार के माननीय मानव संसाधन विकास मंत्री, डॉ. मुरली मनोहर जोशी द्वारा प्रोजेक्‍ट शिक्षानेट का उद्घाटन किया गया था।

जीवन कौशल में आपदा प्रबंधन पाठ्यक्रम और शिक्षा वर्ष 2003 में शुरू की गई थी।

एम.एच.आर.डी. के निर्देशों के तहत किशोरों के स्‍वास्‍थ्‍य, समग्र विकास के लिए व्‍यक्तित्‍व से संबंधित जरूरतों को पूरा करने के लिए किशोर शिक्षा कार्यक्रम 2005 शुरू किया गया था।

एन.सी.एफ. 2005 के अनुसार एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा नये पाठ्यक्रम और पाठ्य पुस्‍तक तैयार की गई थी।

डी.टी.एच के माध्‍यम से परस्‍पर संवादात्‍मक दूरस्‍थ आधारित शिक्षा प्रणाली की सुविधा के लिए इसरो (आई.एस.आर.ओ.) द्वारा सी.बी.एस.ई को छह सैटेलाइट इंटेसिव टर्मिनल आवंटित किए गए थे। वर्ष 2007 में सी.बी.एस.ई के दो अतिरिक्‍त क्षेत्रीय कार्यालय पटना और भुवनेश्‍वर में स्‍थापित किए गए थे।

पहली बार वर्ष 2007 में, सी.बी.एस.ई. ने डब्‍ल्‍यु.एच.ओ, भारत के साथ मिलकर सी.डी.एस. डब्‍ल्‍यु.एच.ओ, जेनेवा द्वारा यादृच्छिक सर्वेक्षण में चुने गए विभिन्‍न प्रकार के 75 संबद्ध विद्यालयों में ग्‍लोबल स्‍कूल हेल्‍थ सर्वे(जी.एस.एच.एस.) का आयोजन किया।

वर्ष 2008-09 में सी.बी.एस.ई. की वार्षिक रिपोर्ट एक रिफ्रेशिंग डिजिटाइज्‍ड प्रारूप में प्रकाशित की और सी.डी. में भी प्रस्‍तुत की गई।

कक्षा-X तथा कक्षा-XII में प्रमुख विषयों पर प्रश्‍न पत्र एक नये प्रारूप के तहत रटने से कौशल सीखने के लिए एक बदलाव के साथ एन.सी.एफ के आधार पर फिर से डिजाइन किए गए थे।

कक्षा-XI में विरासत (हेरिटेज) शिल्‍प और ग्राफिक्‍स डिजाइन नामक दो नये वैकल्पिक विषयों को शुरू किया गया।

वर्ष 2009 में बोर्ड द्वारा परीक्षा/मूल्‍यांकन के एक नये मॉड्यूल के रूप में सतत व्‍यापक मूल्‍यांकन शुरू किया गया था।

सी.बी.एस.ई स्‍टूडेंट्स ग्‍लोबल एप्‍टीट्यूड इंडेक्‍स, सम्‍भवत: शायद देश में किसी भी शिक्षा बोर्ड द्वारा तैयार किया जाने वाला पहला साइकोमेट्रिक टेस्‍ट है जो एक बच्‍चे की रूचि और योग्‍यता का वैज्ञानिक मूल्‍यांकन प्रदान करने के लिए शुरू किया गया था। परीक्षा (टेस्‍ट) का उद्देश्‍य रूचि, अभिवृत्ति तथा प्रेरणा के आधार पर +2 में विषयों का चयन करने हेतु कक्षा-X के विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करना था। पहला संस्‍करण पूरे विश्‍व में एक साथ जनवरी, 2011 में 2.12 उम्‍मीदवारों के लिए आयोजित किया गया था।

वर्ष 2010 की परीक्षाओं के लिए कम्‍पार्टमेंट/अनुत्‍तीर्ण घोषित करने की प्रथा को बंद कर दिया गया और पहली बार कक्षा-X के परीक्षा परिणाम को ग्रेड में घोषित किया गया। विषयवार निष्‍पादन का विवरण (स्‍टेटमेंट) ग्रेड प्‍वाइंट (जी.पी.) और सी.जी.पी.ए को दर्शाते हुए जारी किया गया था।

सी.बी.एस.ई. द्वारा वर्ष 2011 में कक्षा-I कक्षा-VIII हेतु शिक्षक के रूप में नियुक्ति के लिए पात्रता निर्धारित करने के लिए एन.सी.टी.ई. के दिशानिर्देशों के अनुसार प्रथम केंद्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा (सी.टी.ई.टी) आयोजित की गई थी।

वर्ष 2012-13 से, सी.बी.एस.ई ने मानकीकृत साधनों और आंतरिक (स्‍व-मूल्‍यांकन) और बाह्य मूल्‍यांकन (पियर रिव्‍यु) की प्रकिया के माध्‍यम से विद्यालयों का आकलन करने के लिए विद्यालय गुणवत्‍ता मूल्‍यांकन और प्रत्‍यायन शुरू किया।

वर्ष 2014 : सी.बी.एस.ई. द्वारा यू.जी.सी. राष्‍ट्रीय पात्रता परीक्षा आयोजित की गई थी, जिसका उद्देश्‍य जे.आर.एफ. और सहायक प्रोफेसर के लिए भारतीय नागरिकों की पात्रता निर्धारित करना है।

समावेशी शिक्षा प्रकोष्‍ठ की स्‍थापना स्‍कूलों को एक प्रणाली से लैस करने के लिए की गई थी जो प्रशिक्षण के माध्‍यम से शिक्षकों को संवेदनशील बनाने के साथ दिव्‍यांगजनों के समान अवसर को सुनिश्चित करने के लिए परामर्श अधिकारियों और प्रख्‍यात मनोचिकित्‍सकों के सहयोग से काम करता है।

वर्ष 2015 सी.बी.एस.ई द्वारा कई डिजिटल पहलों की शुरूआत का प्रतीक है। पहली बार, सभी क्षेत्रों के लिए कक्षा-X तथा कक्षा-XII के परिणाम एक साथ घोषित किए गए थे। ग्‍लोबल डॉक्‍यूमेंट टाइप आइडेंटिफ़ायर (जी.डी.डी.आई) का उपयोग करके बोर्ड परीक्षा प्रमाणपत्र भी शुरू किया गया था। ई-सी.बी.एस.ई को एक पोर्टल और मोबाइल ऐप “SARANSH” के माध्‍यम से शैक्षणिक और व्‍यावसायिक सामग्री सहित विभिन्‍न कक्षाओं और विषयों पर पुस्‍तकें प्रदान करने के लिए शुरू किया गया था। इस अवधि में विद्यालयों हेतु व्‍यापक आत्‍म-समीक्षा के लिए एक ऑनलाइन सुविधा भी शुरू की गई थी।

उड़ान (UDAAN) नाम से एक महत्‍वाकांक्षी परियोजना आर्थिक और वंचित पृष्‍ठभूमि से योग्‍य छात्राओं को मार्गदर्शन और प्रशिक्षण प्रदान करने और कक्षा-XI तथा कक्षा-XII में अध्‍ययन करते समय पेशेवर इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं के लिए उन्‍हें तैयार के लिए शुरू की गई थी।

वर्ष 2016 में, बोर्ड ने डिजीटल पहल में अधिक वृद्धि देखी, जो कि डिलीवरी सिस्‍टम में सुधार लाने और भारत सरकार के डिजिटल इंडिया पहल में योगदान देने के इरादे से की गई थीं। ऑनलाइन संबद्ध विद्यालय (स्‍कूल) सूचना प्रणाली (ओ.ए.एस.आई.एस) शुरु की गई थी, जिसने पूरे स्‍कूल की जानकारी को एक डिजिटल प्‍लेटफॉर्म पर समेकित किया और इसका उपयोग कई महत्‍वपूर्ण गतिविधियों जैसे परीक्षा केंद्र तय करने, बुनियादी ढांचे की उपलब्‍धता, शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक संकाय के लिए किया जा सकता है। जियोटैगिंग द्वारा प्राप्‍त (फैच्‍ड) अक्षांश और देशांतर की जानकारी का उपयोग करके परीक्षा केंद्र लोकेटर सॉफ्टवेयर विकसित किया गया था।

डिजी-लॉकरों के माध्‍यम से परिणाम मंजुषा नाम से विद्यार्थियों के शैक्षणिक अभिलेख (रिकॉर्ड) के भंडारण (स्‍टोरेज), एक्‍सेस और अद्यतन के लिए केंद्रीय शैक्षणिक रिपोजिटरी भी उपलब्‍ध कराया गया था।

वर्ष के दौरान सी.बी.एस.ई ‘ई-सनद’ नामक एक ऐतिहासिक ‘ई-पहल’ में विदेश मंत्रालय के साथ साझेदारी करने वाला पहला बोर्ड भी बन गया, जो उच्‍च शिक्षा अथवा रोजगार के लिए विदेश जाने के इच्‍छुक भारतीय विद्यार्थियों के शैक्षणिक दस्‍तावेजों के ऑनलाइन सत्‍यापन की सुविधा प्रदान करता है।

फीडबैक के आधार पर वर्ष 2017 में चल रहे सी.सी.ई सिस्‍टम को बंद कर दिया गया था, कक्षा X की परीक्षाएं पारंपरिक मोड में कक्षा-X में बहाल की गई थीं।

कक्षा 9 से कक्षा 12 तक विद्यालयों में वर्ष 2018 से स्‍वास्‍थ्‍य और खेल शिक्षा अनिवार्य कर दी गई। सी.बी.एस.ई के इस कदम की मास्‍टर ब्‍लास्‍टर सचिन तेंदुलकर ने सराहना की, जिन्‍होंने बोर्ड को व्‍यक्तिगत रूप से लिखा था। सी.बी.एस.ई ने अंतरराष्‍ट्रीय खेल आयोजनों में भारत का प्रतिनिधित्‍व करने वाले विद्यार्थियों के लिए परीक्षाओं को भी रिशेड्यूल कर दिया। कक्षा-IX से कक्षा-XII के लिए खेल दिशानिर्देशों का एक मैनुअल विवरण तथा कार्यन्‍वयन की कार्यप्रणाली सभी स्‍कूलों के साथ सभी के लिए स्‍वास्‍थ्‍य और खेल को बढ़ावा देने के लिए साझा की थी।

बोर्ड ने अपना पहला ट्विटर और फेसबुक अकाउंट खोला, जब यू-ट्यूब अकाउंट को उसके आउटरीच प्रोग्राम के हिस्‍से के रूप में सक्रिय किया गया और जनता की जवाबदेही बढ़ाने के लिए इसकी डिजिटल उपस्थिति पंजीकृत की।

संबद्धता उपनियम वर्ष 2018 में हितधारकों के साथ कार्य करने में आसानी के लिए संशोधित किए गए थे।

वर्ष 2019 का मुख्‍य आकर्षण ‘सी.बी.एस.ई द्वारा प्रदत्‍त ऑनलाइन सेवा’ हेतु डिजिटल इंडिया पुरस्‍कार (अवार्ड) था। नवीनतम पॉडकास्‍ट प्‍लेटफॉर्म “सी.बी.एस.ई-शिक्षा वाणी” को शैक्षणिक, प्रशिक्षण पहल पर महत्‍वपूर्ण जानकारी समय पर शिक्षाप्रद, आकर्षक और सहज तरीके से प्रसारित करना शुरू(लांच) किया गया है।

परीक्षा सुधार प्रक्रिया के भाग के रूप में, सी.बी.एस. ई ने मूल्‍यांकन में गुणवत्‍ता और परीक्षा परिणामों की घोषणा में एकरूपता लाने के लिए फरवरी, 2019 में कौशल आधारित विषयों तथा मार्च, 2019 में शैक्षणिक विषयों की परीक्षाओं का आयोजन किया।

वर्ष 1998 में मनोवैज्ञानिक परामर्श प्रदान करने के समुदाय अधिगम्‍य कार्यक्रम (आउटरीच प्रोग्राम) शुरू किया गया था, जिसमें ऑडियो परामर्श के लिए इंटरएक्टिव वॉयस रिस्‍पॉन्‍स सिस्‍टम का उपयोग करना, समाचार पत्रों में प्रश्‍नोत्‍तर कॉलम, परीक्षा चिंता पर मल्‍टीमीडिया शिक्षाप्रद सामग्री, अवसाद, आक्रमकता और यू-ट्यूब, ट्विटर और वेबसाइट के माध्‍यम से अन्‍य मुद्दे जैसी कई विशेषताएं शामिल थीं, जो काफी व्‍यापक रही हैं।

इस प्रकार, बोर्ड स्‍व-सुधार और गुणवत्‍ता बढ़ाने के लिए संबद्ध विद्यालयों के बीच सहयोग हेतु हब्स ऑफ लर्निंग के गठन पर नए जोर के साथ नवाचारों, सुधारों और सकारात्‍मक पहल के साथ आगे बढ़ना जारी रखा है।

+2 के बाद शैक्षणिक पाठ्यक्रमों का नवीन सार-संग्रह (कॉम्‍पेन्‍डियॅम) विद्यार्थियों एवं अभिभावकों को भविष्‍य की तैयारी के लिए पारंपरिक और नए युग के पाठ्यक्रमों, संस्‍थानों और पात्रता पर अति आवश्‍यक मार्गदर्शन प्रदान करता है।

शिक्षण के सभी विषयों में सत्‍यनिष्‍ठा और नीतिशास्‍त्र मॉड्यूल में पर्याप्‍त संवेदनशीलता के साथ विद्यार्थियों की सीखने की क्षमता को बढ़ाने और सशक्‍त बनाने हेतु कृत्रिम बुद्धिमत्‍ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस), योग तथा बचपन की देखभाल को कक्षा-X तथा कक्षा-XII में कौशल विषय के रूप में पेश किया गया है।

Chart of CBSE
Status of CBSE

अपने कार्यों के सुचारू निष्‍पादन के लिए, बोर्ड ने देश के विभिन्‍न हिस्‍सों में संबद्ध विद्यालयों के प्रति अधिक उत्‍तरदायी होने के लिए क्षेत्रीय कार्यालयों की स्‍थापना की है, जो निम्‍नलिखित हैं :

वर्ष 1990

  • अजमेर
  • इलाहाबाद
  • चेन्‍नई
  • दिल्‍ली
  • गुवाहटी
  • पंचकुला

वर्ष 2008

  • भुवनेश्‍वर
  • पटना

वर्ष 2014

  • देहरादून
  • तिरुवनंतपुरम

सी.बी.एस.ई ने 6 अतिरिक्‍त नये क्षेत्रीय कार्यालयों के साथ 2019 में आगे विस्‍तार किया है ।

बेंगलुरु,
भोपाल,
चंडीगढ़,
दिल्‍ली पश्चिम ,
नोएडा ,
पुणे

गुणवत्‍ता तथा क्षमता निर्माण के लिए उत्‍कृष्‍टता केंद्र

बोर्ड ने विभिन्‍न क्षमता निर्माण कार्यक्रमों के माध्‍यम से नवीनतम अपडेट और रणनीतियों के साथ संबद्ध विद्यालयों के सेवारत शिक्षकों से लैस करने के लिए निम्‍न‍ानुसार 13 उत्‍कृष्‍टता केंद्र की स्‍थापना की है।

वर्ष 2015

  • रायबरेली
  • सी.ओ.ई, काकीनाडा
  • सी.ओ.ई, पुणे
  • सी.ओ.ई, पंचकुला

वर्ष 2008

  • अजमेर
  • भुवनेश्‍वर
  • इलाहाबाद
  • चेन्‍नई
  • गुवाहटी
  • पटना
  • देहरादून
  • तिरुवनंतपुरम

अधिक सी.ओ.ई.एस

शैक्षणिक सत्र 2019-2020 से, बोर्ड में बेंगलुरु, भोपाल, चंडीगढ़, पश्चिमी दिल्‍ली और नोएडा में 04 अतिरिक्‍त सी.ओ.ई होंगे। भारत के बाहर स्थित विद्यालयों की क्षेत्रीय कार्यालय पूर्वी दिल्‍ली द्वारा देखभाल की जाएगी।

Hall Of Fame
Secretaries of The Board
CBSE Headquaters and Regional Offices